दत्तात्रेय जयंती: हिंदू धर्म के एक महत्वपूर्ण पर्व के रूप में मनाई जाती है, जो भगवान दत्तात्रेय के जन्मोत्सव के रूप में प्रसिद्ध है। भगवान दत्तात्रेय, त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) का एक रूप माने जाते हैं। वे ज्ञान, योग, तपस्या और भक्ति के प्रतीक हैं। दत्तात्रेय जयंती विशेष रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटका, आंध्र प्रदेश, गुजरात और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में धूमधाम से मनाई जाती है।
दत्तात्रेय जयंती का महत्व:
भगवान दत्तात्रेय का जन्म त्रिदेव के सम्मिलित रूप में हुआ था, इसलिए वे ब्रह्मा, विष्णु और शिव के गुणों का समावेश करते हैं। दत्तात्रेय जयंती पर भक्त भगवान दत्तात्रेय की पूजा करते हैं और उनके द्वारा दिए गए उपदेशों और आशीर्वाद को प्राप्त करने की कामना करते हैं। इस दिन विशेष रूप से तप, साधना और भक्ति का महत्व होता है।
दत्तात्रेय जयंती पूजा विधि:
1. स्नान और शुद्धता: इस दिन सुबह जल्दी उठकर उबटन और स्नान करें। फिर स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजा स्थल को शुद्ध करें।
2. भगवान दत्तात्रेय की पूजा: भगवान दत्तात्रेय की मूर्ति या चित्र स्थापित करें और उन्हें फूल, फल, तुलसी पत्र, दीपक, धूप, और प्रसाद अर्पित करें।
3. मंत्र जाप: इस दिन विशेष रूप से “ॐ दत्तात्रेयाय नमः” या “ॐ त्र्यंबकाय महादेवाय” मंत्र का जाप करें। इससे मानसिक शांति और आशीर्वाद मिलता है।
4. भजन और कीर्तन: भगवान दत्तात्रेय के भजन और कीर्तन गाने से वातावरण में भक्ति का माहौल बनता है। यह आत्मिक शांति और सकारात्मकता का संचार करता है।
5. व्रत और उपवास: कई लोग इस दिन उपवासी रहते हैं और विशेष रूप से दत्तात्रेय के नाम का जाप करते हैं। यह व्रत भगवान दत्तात्रेय की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
6. दान पुण्य: इस दिन ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन और दान देना बहुत शुभ माना जाता है। इससे पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में समृद्धि आती है।
दत्तात्रेय जयंती का इतिहास:
किंवदंती के अनुसार, भगवान दत्तात्रेय का जन्म ब्रह्मा, विष्णु और शिव के एकत्रित रूप के रूप में हुआ था। भगवान दत्तात्रेय ने अपने जीवन में अनेक उपदेश दिए, जो लोगों को सत्य, धर्म और योग की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। वे एक योगी और संत के रूप में प्रसिद्ध हैं और उनके द्वारा दी गई शिक्षा आज भी लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण मानी जाती है।
दत्तात्रेय जयंती का पर्व कब मनाते हैं?
दत्तात्रेय जयंती हर साल **माघ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि** को मनाई जाती है। यह तिथि आमतौर पर दिसंबर और जनवरी के बीच आती है। इस दिन विशेष रूप से भगवान दत्तात्रेय के भक्त उनके जन्मोत्सव का उत्सव बड़े धूमधाम से मनाते हैं।
दत्तात्रेय के 24 गुरु:
भगवान दत्तात्रेय के जीवन में 24 गुरु थे, जिनसे उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया। ये गुरु प्रकृति के विभिन्न रूप थे, जैसे:
1. अग्नि
2. जल
3. पृथ्वी
4. वायु
5. सूर्य
6. चंद्रमा
7. हाथी
8. मोर
9. बाघ
10. कुत्ता
11. गाय
12. बंदर
और अन्य। भगवान दत्तात्रेय ने इन सभी से जीवन के गहरे और महत्वपूर्ण उपदेश प्राप्त किए और इन्हें मानवता के कल्याण के लिए बताया।