
चैत्र नवरात्रि हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जो माँ दुर्गा के नौ रूपों की आराधना के लिए समर्पित होता है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आरंभ होता है और नौ दिनों तक चलता है। 2025 में, यह शुभ पर्व **30 मार्च से 7 अप्रैल** तक मनाया जाएगा। इसे वसंत नवरात्रि भी कहा जाता है, क्योंकि यह वसंत ऋतु की शुरुआत में आता है।
नवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व
नवरात्रि को शक्ति, भक्ति और साधना का पर्व माना जाता है। इन नौ दिनों में भक्त माँ दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करते हैं और अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, आत्मबल और शुद्धता का संचार करने का प्रयास करते हैं। यह समय साधना, उपवास, ध्यान और आध्यात्मिक जागरूकता के लिए उत्तम माना जाता है।
माँ दुर्गा के नौ स्वरूप और उनकी पूजा
प्रत्येक दिन माँ दुर्गा के एक अलग रूप की पूजा की जाती है:
1. शैलपुत्री (30 मार्च) – यह माँ दुर्गा का पहला रूप है, जो पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में पूजी जाती हैं।
2. ब्रह्मचारिणी (31 मार्च) – यह स्वरूप तपस्या और संयम का प्रतीक है।
3. चंद्रघंटा (1 अप्रैल) – माँ चंद्रघंटा सौम्यता और वीरता का प्रतीक हैं।
4. कूष्मांडा (2 अप्रैल) – इन्हें ब्रह्मांड की रचना करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है।
5. स्कंदमाता (3 अप्रैल) – यह स्वरूप माँ का वात्सल्य रूप है, जो भक्तों को प्रेम और करुणा प्रदान करता है।
6. कात्यायनी (4 अप्रैल) – यह देवी महिषासुर मर्दिनी के रूप में पूजी जाती हैं।
7. कालरात्रि (5 अप्रैल) – यह स्वरूप अंधकार और नकारात्मक ऊर्जा का नाश करता है।
8. महागौरी (6 अप्रैल) – यह देवी श्वेत वस्त्र धारण करने वाली, शुद्धता और शांति की प्रतीक हैं।
9. सिद्धिदात्री (7 अप्रैल) – यह माँ दुर्गा का अंतिम स्वरूप है, जो भक्तों को सिद्धियाँ प्रदान करती हैं।
नवरात्रि के अनुष्ठान और परंपराएँ
– भक्त उपवास रखते हैं और सात्विक आहार ग्रहण करते हैं।
– माँ दुर्गा की आरती, भजन-कीर्तन और हवन का आयोजन किया जाता है।
– कन्या पूजन किया जाता है, जिसमें छोटी कन्याओं को भोजन कराकर माँ दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
– इस दौरान राम नवमी भी मनाई जाती है, जो भगवान श्रीराम के जन्म का उत्सव है।